
News Edition 24 Desk: करीब एक दशक बाद यह साफ हो गया है कि बीजापुर के एडसमेटा में हुई कथित मुठभेड़ फर्जी थी। एडसमेटा में कथित नक्सल-सुरक्षाबलों की मुठभेड़ (Naxal-Security Forces Encounter) की थ्योरी को ख़ारिज करते हुए न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट (judicial inquiry commission report) में बताया गया है. आपको याद होगा की सुरक्षाबलों ने बीज पंडुम का त्योहार मना रहे आदिवासियों पर गोली चलाई (Shots fired on tribals in panic) थी. गोलीबारी में मारे गए लोग नक्सली नहीं, ग्रामीण थे. सुरक्षाबलों ने उन्हें नक्सली समझ लिया और घबराहट में गोली चलाई. इसमें 8 ग्रामीणों की मौत हुई थी। यह सच एडसमेटा विशेष न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट में सामने आई है।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सोमवार को यह रिपोर्ट विधानसभा के पटल पर रखी। इसके साथ ही यह रिपोर्ट सार्वजनिक हो गई। आपको बता दे की 17-18 मई 2013 की रात एक मुठभेड़ हुई थी. बीजापुर के जगरगुण्डा थाने के ग्राम एडसमेटा (Village Adsmeta) में. इस पुरे मामले में 4 बच्चों समेत 8 लोगों की जान चली गई थी. तब से लेकर अब तक इसके बाद से इस मुठभेड़ पर सवाल खड़े हो रहे थे. करीब एक दशक बाद यह साफ हो गया है कि बीजापुर के एडसमेटा में हुई मुठभेड़ फर्जी(Fake encounter in Bijapur’s Adsmeta) थी।
क्या कहती है रिपोर्ट
अगर रिपोर्ट की माने तो रिपोर्ट में बताया गया कि 17-18 मई 2013 की रात एडसमेटा गांव के पास से गुजरते हुए सुरक्षाबलों ने आग के पास लोगों का जमावड़ा देखा। संभवत: उन लोगों ने ग्रामीणों को नक्सली मान लिया, जिसके परिणामस्वरूप उन लोगों ने आड़ ली और भीड़ की ओर फायर करना शुरू कर दिया। रिपोर्ट में स्पष्ट तौर पर कहा गया है, यह गोलीबारी आत्मरक्षा में नहीं की गई थी। कोई भी तथ्य नहीं मिले हैं, जिससे पता चलता हो कि ग्रामीणों की ओर से सुरक्षाबलों पर गोली चलाई गई हो। तत्कालीन सरकार ने जस्टिस वी के अग्रवाल की एकल सदस्यीय न्यायिक जाँच कमेटी का गठन किया था. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कमेटी की रिपोर्ट आज विधानसभा में पेश की है.
सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस वी.के. अग्रवाल की रिपोर्ट में कहा गया –
मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस वी.के. अग्रवाल (Retired Judge of Madhya Pradesh High Court Justice V.K. Agarwal) की रिपोर्ट में कहा गया है किएडसमेटा में उस रात फायरिंग करने वाली टीम को रवाना करने से पहले ब्रीफिंग दी गई थी। जांच करने के बाद उन्होंने पाया कि सुरक्षाकर्मियों ने घबराहट में गोलियां चलाई (Security personnel opened fire in panic)होंगी. उसमें यह बात थी कि आबादी वाले क्षेत्रों से नहीं गुजरना है. रिपोर्ट में इस घटना को तीन से अधिक बार गलती बताते हुए जस्टिस अग्रवाल ने कहा कि मारे गए आदिवासी निहत्थे थे और वहां 44 राउंड चली गोलियों में ग्रामीण मारे गए. उसके साथ सुरक्षाबलों के इस दस्ते को और क्या-क्या बताया गया था, यह अधिकारियों ने नहीं बताया। आयोग के सामने कहा गया कि उन्हें याद नहीं है कि क्या ब्रीफिंग दी गई थी।