ये है दुनिया की सबसे सस्ती कोरोना वैक्सीन, जानें टीके की कीमत और खासियत..

News Edition 24 Desk: नई दिल्‍ली। एक ऐसी वैक्सीन (Corona Vaccine) जिसकी कीमत पानी की बोतल से भी कम हो, इस वैक्सीन को खरीदने में जितना खर्च आएगा, उससे ज्यादा महंगा तो पिज्जा लोग खा लेते हैं। ये वही वैक्सीन है जो तब खबरों में आई जब भारत ने 1500 करोड़ रुपए एडवांस देकर इस वैक्सीन के 30 करोड़ डोज़ का ऑर्डर दिया था।

50 रुपए कीमत में एक डोज मिलने वाली इस वैक्सीन का नाम है ‘कोर्बेवैक्‍स’ । हालांकि बाज़ार में ये 250 रुपए में उपलब्ध होगी। तब भी ये दूसरी वैक्सीन के मुकाबले काफी सस्ती है। वैक्सीन को बनाने वाले का कहना है कि किसी भी चीज़ की कीमत इस बात पर तय होती है कि आप मुनाफा कमाना चाहते हैं या सेवा करना चाहते हैं। पिछले साल जब mRna और वायरल वैक्टर वैक्सीन दुनिया में हलचल मचाए हुईं थी, उस दौरान वे चुपचाप एक असरदार इलाज पर ध्यान लगाए हुए थे.


ये है कोरोना के खिलाफ युद्ध 

कोर्बेवैक्‍स का निर्माण भले ही हैदराबाद की बायोलॉजिकल–ई में किया जाएगा लेकिन इस वैक्सीन को विकसित टेक्सास में बेयलर कॉलेज ऑफ मेडिसिन में बच्चों के अस्पताल के वैक्सीन विभाग ने किया था। वैक्सीन को विकसित करने वाले सेंटर के को-डायरेक्टर पीटर होटेज ने वैक्सीन विकास पर 20 साल दिए हैं. 2011 में इन्होंने कोरोना वायरस वैक्सीन विकास कार्यक्रम की शुरुआत की जिसका उद्देश्य सार्स जैसी बीमारियों के लिए कम दाम वाली वैक्सीन का निर्माण करना था।

उनके नेतृत्व में वैक्सीन पर काम हुआ जिसका नाम CoVRBD219-N1 था, पर इसका कभी इस्तेमाल नहीं हुआ। लेकिन जब पिछले साल कोविड ने अपने फन फैलाना शुरू किए तो इस वैक्सीन पर फिर से विचार शुरू हुआ क्योंकि सार्स और कोविड वायरस एक दूसरे से संबंध रखते हैं। जिस तरीके और विधि से वैक्सीन तैयार की जा रही थी, उसी तरीके को इस्तेमाल करके कोविड-19 पर काम शुरू हुआ था। इसमें ये भी ध्यान रखा गया कि आधुनिक तरीके का इस्तेमाल करके कैसे वैक्सीन के उत्पादन को बढ़ाया जा सके। जिससे इसके दाम पर भी असर ना पड़े।


अविकसित और विकासशील देशों में न हो वैक्सीन की कमी

वैक्सीन की कीमत को कम रखने के लिए सेंटर ने इस पर किसी तरह का कोई पेटेंट नहीं रखा। बल्कि इसके फार्मूले को पब्लिक डोमेन में डाल दिया, यानि कोई भी इस तरीके का इस्तेमाल करके वैक्सीन निर्माण कर सकता है। इसके पीछे एकमात्र उद्देश्य ये रहा कि इस तरह से अविकसित और विकासशील देशों में वैक्सीन की कोई कमी नहीं रहे। होटेज का कहना है कि वैक्सीन को पेटेंट नहीं करवाने के पीछे एक वजह और भी है। किसी भी अंतर्राष्ट्रीय वैक्सीन पेटेंट करवाने की प्रक्रिया बहुत खर्चीली होती है। हमें बमुश्किल काम करने के लिए आर्थिक मदद मिली थी। अगर हमारे पास एक लाख डॉलर हैं तो हम उसका इस्तेमाल वैज्ञानिकों को सैलरी देने में करेंगे ना की पेटेंट की फीस चुकाएंगे।


क्या अलग है कोर्बेवैक्‍स वैक्सीन में

मार्च में होटेज ने कहा कि ये वैक्सीन पैसा कमाने के लिए नहीं जनता के लिए है. इसका इस्तेमाल गरीब और कम आय वाले देशों में किया जा सकता है। होटेज महीनों तक ये बात कहते रहे कि ये वैक्सीन दुनिया की सबसे कम दाम (110 रुपये) वाली वैक्सीन है। उसके पीछे ये वजह है कि इसे बनाने में वही पुराना तरीका इस्तेमाल किया गया, जिससे 1986 में हेपेटाइटिस –बी वैक्सीन को बनाया गया था।

होटेज का कहना है कि ये वैक्सीन साधारण और बगैर किसी लाग लपेट के तैयार हो जाती है। खास बात ये है कि जितना आसान इस वैक्सीन को बनाना है उतना ही इसका संग्रहण भी है।  इसे किसी भी साधारण रेफ्रिजरेटर में रखा जा सकता है। अब तक इस तरह कि दूसरी वैक्सीन जिसे ‘रिकॉम्बिनेंट वैक्सीन’ कहते हैं, कई सालों के प्रयोग से ये साबित हो चुका है कि ये बच्चों के लिए भी सुरक्षित होती है।


वैक्सीन के प्रकार

असली वायरस से: इस वैक्सीन में बीमारी पैदा करने वाले वायरस को कमज़ोर करके या मारकर वैक्सीन तैयार की जाती है, जैसे कोवैक्सीन।

वायरल वैक्टर: इस तरह की वैक्सीन में किसी दूसरे वायरस में बीमारी पैदा करने वाले वायरस का जेनेटिक कोड डाला जाता है, जो वायरस के विशेष हिस्से जो बीमार पैदा करने के लिए जिम्मेदार है उसका निर्माण करता है, जैसे कोविशील्ड।

प्रोटीन सबयूनिट: इसमें वायरस का वो हिस्सा मौजूद रहता है जो बीमारी पैदा करने की वजह है, जिससे इम्यून सिस्टम उसकी पहचान कर सके, जैसे कोर्बावेक्स।

एम आरएनए: इस तरह की वैक्सीन में केवल जेनेटिक मटेरियल होता है जिसे वायरस के उस हिस्से को बनाने के लिए निर्देश मिले होते है जो बीमारी पैदा करने के लिए जिम्मेदार है. जैसे फाइजर वैक्सीन।

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