नई दिल्ली: आज नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 126वीं जयंती है. इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने बोला कि, “बंगाल की भावना अब राष्ट्र की भावना है? नेताजी सुभाष चंद्र बोस की विचारधारा आरएसएस की विचारधारा से बहुत अलग नहीं है, बल्कि संघ की शाखाएं नेताजी के दिखाए रास्ते पर चलती रही हैं.’ संघ प्रमुख ने बड़ी बात कही है. आरएसएस ने आज नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जन्मदिन के अवसर पर कोलकाता के शहीद मीनार में विशेष कार्यक्रम आयोजित किया.
इस दौरान मोहन भागवत ने बोला कि, “देश के लिए हम जितना करें, उतना कम है, लेकिन बदले में हमने नेताजी को क्या दिया? हमने कुछ भी नहीं दिया. हमने नेताजी और गुरु गोविंद सिंह के साथ भी कभी न्याय नहीं किया. उन्होंने अपना परिवार ही नहीं छोड़ा, बल्कि राष्ट्र के लिए आगे बढ़कर लड़ाई लड़ी. सत्ता को चुनौती दी.” मालूम हो कि, हाल ही में नेताजी की बेटी अनिता बोस फाफ ने बोला था कि नेताजी और आरएसएस की विचारधाराएं अलग हैं. दोनों की विचारधाराओं में समानताएं नहीं है.
मोहन भागवत ने कोलकाता में बोला कि, “हमें नेताजी के सपने को साकार करना है. यदि किस्मत ने उनका साथ दिया होता तो वे पहले राष्ट्र पर शासन कर सकते थे. उन्होंने बोला कि, नेताजी जो करते थे, संघ भी वही काम कर रहा है. नेताजी एक समृद्ध राष्ट्र देखना चाहते थे. हम भी यही चाहते हैं. हमारे राष्ट्र में पूरी दुनिया का नेतृत्व करने की ताकत है. हमें वह उदाहरण पेश करना होगा.”
आरएसएस प्रमुख ने बोला कि, “बंगाल की भावना अब राष्ट्र की भावना है? नेताजी सुभाष चंद्र बोस की विचारधारा आरएसएस की विचारधारा से बहुत अलग नहीं है, बल्कि संघ की शाखाएं नेताजी के दिखाए रास्ते पर चलती रही हैं.’
मोहन भागवत ने कहा, “कभी-कभी किसी मंजिल तक पहुंचने का रास्ता सीधा होता है, कभी-कभी कठिनाई होता है. लेकिन, मंजिल हमेशा एक ही होनी चाहिए. सुभाष चंद्र बोस की मंजिल क्या थी? वह हमारी मंजिल है. हम वही करते हैं.” वहीं विश्व मंच पर हिंदुस्तान की स्थिति के बारे में मोहन भागवत ने कहा, “भारत एक अमर राज्य है. हिंदुस्तान ने पूरी दुनिया को धर्म सिखाया है. इस धर्म का एक अलग अर्थ है. यह धर्म न्याय के बारे में है. हिंदुस्तान दुनिया को एकता सिखाता है. हम उस हिंदुस्तान के निर्माण की ओर बढ़ रहे हैं. दुनिया हिंदुस्तान की ओर देख रही है.”
मोहन भागवत ने कहा, “यदि भाग्य नेताजी के साथ होता तो वह हमारे क्षेत्र में बहुत आगे बढ़ सकते थे. हर रास्ता मंजिल की ओर ले जाता है. सुभाष बाबू और कांग्रेस पार्टी आंदोलन हिंदुस्तान को एक मंच पर ले गए, लेकिन बाद में नेताजी को एहसास हुआ कि एक हथियारबंद आंदोलन की आवश्यकता है. सभी का लक्ष्य एक ही था. नेताजी ने उस लक्ष्य के लिए एक अलग रास्ता चुना था.”