कांकेर। छत्तीसगढ़ से हर वर्ष बड़े पैमाने पर मानव तस्करी हो रही है, मगर पुलिस और प्रशासन के सुस्त नेटवर्क के चलते इस पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। कांकेर जिले के बीहड़ इलाकों से दलालों के चंगुल में फँसकर पैसे कमाने के फेर में तमिलनाडु जा पहुंचे 11 नाबालिग बच्चों के रेस्क्यू के बाद उन्हें 3 महीने बाद कांकेर लाया गया है। इस पूरे ऑपरेशन में रेलवे पुलिस ने प्रमुख भूमिका निभाई है।
कांकेर जिले के आमाबेड़ा, लोहत्तर और तरानंदुल से 9 नाबालिग लड़कियों और 2 लड़कों को दलालों के द्वारा अधिक पैसा कमाने का लालच देकर तमिलनाडु के सेलम जिले में ले जाया गया। यहां रेलवे स्टेशन में नाबालिग बच्चों को देखकर रेलवे पुलिस को सन्देह हुआ, जिसके बाद जवानों ने बच्चों का पीछा कर उन्हें रोक लिया। पूछताछ के दौरान बच्चो ने काम के सिलसिले में छतीसगढ़ से आना बताया।
CWC के जरिये की गई जांच
रेलवे पुलिस ने बच्चों को सेलम जिला प्रशासन के माध्यम से जिला बाल कल्याण समिति CWC को सौंप दिया था। बच्चों से पूछताछ के बाद CWC ने कांकेर की बल कल्याण समिति से सम्पर्क साधा। जिसके बाद बच्चों के द्वारा बताए गए अपने घर के पतों की पुष्टि कांकेर जिले की बाल कल्याण समिति से कराइ गई। तमाम प्रक्रियाएं पूरी करने के बाद आज सेलम से 8 सदस्यीय टीम बच्चों को लेकर कांकेर पहुचीं है।
बाल कल्याण समिति कांकेर द्वारा की गई काउंसिलिंग में बच्चियों ने बताया कि उन्हें पोल्ट्री फॉर्म में अंडा बीनने के नाम पर ले जाया गया था, वहीं 2 लड़कों के मुताबिक वे बोर कंपनी में काम करने गए थे। 300 रुपए रोजी का लालच देकर दलाल इन बच्चों को दूसरे राज्य ले गया था। जिला बाल सरंक्षण अधिकारी रीना लारिया ने बताया कि बच्चों को लेकर जाने में किस दलाल की भूमिका थी इसका पता नहीं चल सका है।
प्रक्रिया में लग गए 3 महीने..!
कांकेर से तमिलनाडु ले जाये गए बच्चों को 3 महीने पहले ही रेस्क्यू कर लिया गया था मगर ऐसी क्या वजह थी कि इन्हे यहां लाने में इतना लम्बा वक्त लग गया? इस सवाल पर कांकेर की जिला बाल सरंक्षण अधिकारी रीना लारिया का कहना है कि कोरोना काल के चलते ट्रेन नही चलने की वजह से बच्चों को वापस लाने में देरी हुई है।
बाल संरक्षण अधिकारी ट्रेन नहीं चलने का बहाना बना रही हैं , जबकि पूरे देश में ट्रेने कब से शुरू की जा चुकी हैं। दरअसल जिस स्थान पर बच्चों का रेस्क्यू किया जाता है, वहां से पूरी जानकारी संबंधित जिले के बाल संरक्षण इकाई को भेज दिया जाता है। जहां से सभी बच्चों के पते पर जाकर सामाजिक सर्वेक्षण किया जाता है, इसकी रिपोर्ट भेजे जाने के बाद ही बच्चों को वापस भेजा जाता है। अक्सर सामाजिक सर्वेक्षण के काम में ढीला-ढाला रवैया अपनाया जाता है, जिसके चलते ही विलंब होता है। इस देरी के चलते इन बच्चों को तमिलनाडु के सेलम जिले के बाल एवं बालिका गृहों में 3 महीने तक रखने के बाद यहां लाया जा सका है।