
बिलासपुर। बिलासपुर हाईकोर्ट ने मंगलवार को छत्तीसगढ़ के 17 जिलों के कलेक्टर और राज्य के चीफ सेक्रेटरी को नोटिस जारी कर छह हफ्तों में जवाब मांगा है। साथ ही हाईकोर्ट ने सचिव आदिम जाति कल्याण विभाग और सचिव वन एवं पर्यावरण विभाग नई दिल्ली को भी नोटिस जारी किया है। हाईकोर्ट ने ये नोटिस अखिल भारतीय जंगल आंदोलन मोर्चा की जनहित याचिका पर जारी की है।
जनहित याचिका में कहा गया है कि छत्तीसगढ़ की विभिन्न परियोजनाओं में वन संरक्षण अधिनियम का खुलेआम उल्लंघन हो रहा है। योजनाओं के लिए विस्थापन से आदिवासियों की जीवनशैली में बदलाव आ रहा है। जंगल आंदोलन मोर्चा की जनहित याचिका पर मंगलवार को चीफ जस्टिस की डबल बेंच में पहली सुनवाई हुई।

मामले की गंभीरता को देखते हुए कोर्ट ने सभी संबंधित सरकारी पक्षों से 6 हफ्ते में जवाब मांगा है। याचिका में विशेष संरक्षित समुदाय के लोग जो राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र हैं उनके अधिकारों के हनन की बात कही गई है। जनहित याचिका में अचानकमार टाइगर रिजर्व, भोरमदेव और अन्य रिजर्व में निवासरत वनवासियों को विस्थापित किए जाने के मसले को उठाया गया है।
इन जिलों के कलेक्टर को देना होगा जवाब याचिका में रायपुर, बिलासपुर के साथ ही गौरेला-पेंड्रा-मरवाही, कवर्धा, कोरिया, मुंगेली, राजनांदगांव, जशपुर, कोरबा, रायगढ़, धमतरी, गरियाबंद, कांकेर, कोंडागांव, महासमुंद, बलरामपुर, सरगुजा के कलेक्टर को भी पक्षकार बनाया गया है।
आदिवासियों को दत्तक पुत्र बनाने की शुरुआत देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने की थी। बताया जाता है कि आजादी की लडाई के दौरान जब अंग्रेज अफसर डॉ. राजेंद्र प्रसाद को तलाश रहे थे तो वे बचने के लिए सरगुजा पहुंचे। वहां पंडो आदिवासियों के गांव में आकर छिपे थे। वे यहां करीब दो साल रहे और इस दौरान एक शिक्षक के रूप में वे यहां कार्य करते रहे। आजादी के बाद डॉ. प्रसाद जब राष्ट्रपति बने तो साल 1952 में छत्तीसगढ़ आए। वह उन्हीं आदिवासियों के बीच पहुंचे और उन्हें दत्तक पुत्र बनाने की घोषणा की।