
कोण्डागांव ब्यूरो : एआईवायएफ एवं एआईएसएफ ने सरकार की दोहरी शिक्षा नीति एवं व्यवस्था की आलोचना प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से करते हुए दोहरी शिक्षा नीति में तत्काल सुधार करने की मांग सरकार से की गई है। बिसम्बर मरकाम जिला अध्यक्ष अखिल भारतीय नौजवान सभा जिला कोण्डागांव ने अखिल भारतीय नौजवान सभा एआईवायएफ एवं अखिल भारतीय छात्र संघ एआईएसएफ जिला कोण्डागांव की ओर से सरकार की दोहरी शिक्षा नीति एवं व्यवस्था की घोर निंदा करते हुए शिक्षा व्यवस्था में तत्काल सुधार लाने की मांग करते हुए कहा है कि सरकार की दोहरी शिक्षा नीति के कारण शिक्षा का बटवारा दो हिस्सों में हो गया है।
सरकार द्वारा शिक्षा दिए जाने हेतु चलाए जाने वाली सरकारी संस्थाओं यानि सरकारी स्कूलों में गांव व नगर के गरीबों, मजदूरों, किसानों आदि जिनकी आय कम होती है के बच्चे षिक्षा हेतु भर्ती करते हैं, जहां बच्चों को अच्छी व सही शिक्षा इसलिए नहीं मिल पाती, क्योंकि सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की काफी कमी रहती है और शिक्षकों की कमी के कारण बच्चों की पढ़ाई कभी भी पूरी व अच्छे से नहीं होती। इस संदर्भ में यदि ग्रामीण क्षेत्र में 3 कक्षाओं का संचालन होने वाले किसी भी मिडिल स्कूलों में जाकर देखा जाए तो, दो या तीन शिक्षक पदस्थ होते हैं जो तीन कक्षाओं जिनमें प्रत्येक कक्षाओं में 6-6 विषय पढ़ाना होता है, कैसे पढ़ा पाते होंगे ? वहीं 3 कक्षाओं के बच्चों को 2 शिक्षकों द्वारा पढ़ाना कितना मुश्किल होता होगा ? वह भी तब जबकि ऐसे 2-3 शिक्षकों को पढ़ाने के अतिरिक्त डाक बनाने जैसे और भी काम करने पड़ें। ऐसे में सरकार द्वारा गरीब आमजनों के बच्चों को पढ़ाने हेतु सरकारी स्कूलों का संचालन करने की बात कहकर वाहवाही बटोरना कहां तक जायज है ? वहीं दूसरी ओर सरकार आए दिन प्राइवेट स्कूल संचालन हेतु निजी संस्थाओं को मान्यता दी जा रही है और ऐसे प्राइवेट स्कूलों में जिनकी आय अधिक होती है यानि कर्मचारी, अधिकारी, नेता आदि जैसे लोग अपने बच्चों को पढ़ाते हैं और डिग्री के साथ-साथ अच्छी नौकरी हासिल कर लेने में सफल रहते हैं।
ऐसे में शासन-प्रशासन की व्यवस्था पर सवाल उठता है कि इस देश में गरीब और अमीरों के बीच ऐसा भेदभाव क्यों ? जबकि सरकार गरीब और अमीर दोनों के द्वारा दिए गए मतों से बनती है। शासन-प्रशासन को यह समझ लेना चाहिए कि शिक्षा का अधिकार सबके लिए बना हुआ है, चाहे राष्ट्रपति का बेटा हो या प्रधान मंत्री का बेटा, सबके लिए एक समान है। तो आज गरीबों के बच्चों के लिए संचालित सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कमी क्यों है ? सभी सरकारी स्कूलों में पर्याप्त षिक्षकों की व्यवस्था सरकार क्यों नहीं कर पा रही है ? शासन सहित प्रशासन को भी इस बड़ी जन समस्या की ओर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। यदि शासन-प्रशासन उक्त बड़ी जन समस्या का समाधान करने की ओर ध्यान नहीं देती और दोहरी शिक्षा नीति ही चलाती रहना चाहती है तो फिर यह साफ जाहिर है कि वह अपनी सरकार को जनता का हितैशी बताकर आम गरीबजनों के साथ छल कर रही है। प्राइवेट स्कूलों में पढ़कर व डिग्री लेने वाले विद्यार्थियों को सरकारी स्कूलों या सरकारी संस्थाओं या विभागों में नौकरी नहीं दी जानी चाहिए। जब सरकार गरीबों के बच्चों को शिक्षा देने की अच्छी व्यवस्था नहीं कर पा रही है, तो जाहिर सी बात है कि शासन-प्रशासन गरीब के बच्चों को बेहतर शिक्षा नहीं देना चाहती, यदि देना चाहती तो दोहरी षिक्षा नीति नहीं अपनाती। दोहरी षिक्षा नीति को खत्म कर यदि शिक्षा व्यवस्था में सुधार नहीं किया गया तो, जन आंदोलन किया जाएगा, जिसकी सम्पूर्ण जिम्मेदारी शासन-प्रशासन की होगी।
ब्यूरो रिपोर्ट कोंडागांव : विकास ललवानी