देश में कोरोना की दूसरी लहर से हर ओर हाहाकार मचा हुआ है. सबसे बड़ी परेशानी की बात है कि अब लोग कोरोना से ठीक होने के बाद ‘ब्लैक फंगस’ के शिकार हो रहे हैं. कोरोना की इस दूसरी लहर में ‘ब्लैक फंगस’ नामक बीमारी भी सामने आई है. कोरोना से जंग जीतने के बाद भी कुछ लोग इस गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं. इसकी वजह से मरीजों की आंखें निकालने तक की नौबत आ रही है.
News Edition 24 : कोरोना महामारी के बीच म्युकर मायकोसिस नामक नई आफत प्रकट हो गई है। ब्लैक फंगस के नाम से भी प्रचलित इस बीमारी में मरीज के नाक के पीछे साइनस इलाके में लगने वाली फफूंद धीरे-धीरे आंख, कान, नाक, गले और फेफड़ों तक को अपनी चपेट में ले लेती है और मरीज की मौत भी हो सकती है। कोरोना संक्रमित मरीज ठीक होने के बाद उन्हें ये बीमारी अपनी चपेट में ले रही है। इस बीमारी का इलाज है लेकिन वो इतना महंगा है कि आम तो क्या खास की जेब पर भी भारी पड़ जाए।
दसअसल, म्युकर मायकोसिस के इलाज में उपयोग में आने वाले इंजेक्शन एम्फोटिसिरीन की बाजार कीमत लगभग 8 हजार रूपये है। इतना ही नहीं म्युकर मायकोसिस की दवाओं के पाउडर और प्रवाही स्वरूप के बीच में जमीन आसमान का अंतर है। यह अंतर कालाबाजारियों की मुनाफाखोरी का सबब बन सकता है। सबसे बड़ी बात यह है कि म्युकर मायकोसिस पीड़ित एक मरीज को बीमारी की गंभीरता और रोगी के शरीर के वजन के परिप्रेक्ष्य में 80 से 150 इंजेक्शन की जरूरत पड़ सकती है। ऐसे में इस बीमारी का खर्च 10 से 15 लाख के बीच पहुंच जाता है। दूसरा, यदि ब्लैक फंगस नियंत्रण से बाहर हो जाए तो आंख, दांत और जबड़े निकालने तक की नौबत आती है।
गुजरात में पिछले कुछ दिनों में म्युकर मायकोसिस के मामले तेजी से बढ़े हैं। सरकार इस घटनाक्रम से परिचित है। इसीलिये उसने चार महानगरों में म्युकर मायकोसिस के इलाज के लिये सिविल अस्पताल में बाकायदा अलग वॉर्ड स्थापित कर दिये हैं। वहीं राज्य सरकार ने 5000 इंजेक्शन खरीदने का ऑर्डर भी दिया है। 6240 रुपये के भाव से इन इंजेक्शन की खरीद की लागत करोड़ों में है। लेकिन एक मरीज को जितने इंजेक्शन की दरकार रहती है उसे देखते हुए 5 हजार इंजेक्शनों से 50-60 से अधिक मरीजों का पूरा इलाज संभव नहीं है।
ऐसे में भगवान न करे और म्युकर मायकोसिस के मामलों में अप्रत्याशित बढ़ौतरी हो जाती है तो इसके इलाज में उपयोग में आने वाले इंजेक्शन और दवाओं की कालाबाजारी की पूरी गुंजाईश है। सरकार को चाहिये कि वह समय रहते इन दवाओं की बिक्री को नियंत्रित करे और इस पर नजर बनाये रखने के लिये ठोस नीति का निर्धारण करे। गुजरात स्टेट फार्मसी काउंसिल ने भी केंद्रीय रसायन मंत्री मनसुख मांडविया को पत्र लिखकर इस बात से अवगत कराया है।