
देश में कोरोना की दूसरी लहर से हर ओर हाहाकार मचा हुआ है. सबसे बड़ी परेशानी के बात है कि अब लोग कोरोना से ठीक होने के बाद ‘ब्लैक फंगस’ के शिकार हो रहे हैं. कोरोना की इस दूसरी लहर में ‘ब्लैक फंगस’ नामक बीमारी भी सामने आई है. इसके मामले सामने आने के बाद से भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) ने चिंता जतायी है. ICMR की ओर से कहा गया है कि कि कोरोना से जंग जीतने के बाद भी कुछ लोग इस गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं. विभाग की ओर से कहा गया है कि इसकी वजह से मरीजों की आंखें निकालने तक की नौबत आ रही है.

इसके साथ ही कई मरीजों की इससे मौत की भी सूचना मिली है. हालांकि यह रेयर इन्फेक्शन है, लेकिन इससे बचाव के लिए जरूरी है कि वक्त रहते लक्षणों की पहचान हो और मरीजों को बचाया जा सके. बताते चलें कि रांची में भी इस तरह का एक मामला आया है. मेडिका हॉस्पिटल में एक मरीज की जान बचाने के लिए उनकी आंख निकालनी पड़ी. ब्लैक फंगस या म्यूकरमाइकोसिस नामक इस बीमारी में मरीज को वक्त पर सही इलाज न मिलने से जान भी जा सकती है.
सूरत में 8, दिल्ली में 6 केस
गुजरात के सूरत में म्यूकरमाइकोसिस के चलते आठ मरीजों की आंखें निकालनी पड़ीं. दिल्ली और देश के दूसरे शहरों से भी ऐसे कुछ मामले आये हैं. दिल्ली के गंगाराम हॉस्पिटल में ब्लैक फंगस की बीमारी से प्रभावित छह मरीजों को एडमिट किया गया है. लखनऊ के केजीएमयू और वाराणसी में भी ऐसे कम से कम तीन मरीज पाये गये हैं. यह बीमारी डायबिटीज और क्रॉनिकल डिजीज वाले मरीजों के लिए ज्यादा खतरनाक है. इस बीमारी पर निगरानी, जांच और इलाज के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और आईसीएमआर ने जो एडवाइजरी जारी की है, उसमें कहा गया है ‘‘ ब्लैक फंगस या म्यूकोरमाइकोसिस का इलाज नहीं किया जाए तो इससे मरीज की जान तक जा सकती है. हवा में मौजूद फफूंद सांस के रास्ते शरीर में पहुंचता है और धीरे-धीरे फेफड़े को प्रभावित करना शुरू कर देता है.’’

इसलिए हो रही है ये बीमारी
विशषज्ञों का मानना है कि म्यूकरमाइकोसिस के केसेज बढ़ने के पीछे की स्टेरॉइड्स का बहुत ज्यादा इस्तेमाल और मरीजों को लंबे समय तक आईसीयू में रखे जाने जैसी वजहें हो सकती हैं. आईसीएमआर-स्वास्थ्य मंत्रालय की एडवाइजरी में बताया गया है कि इस बीमारी का सबसे बड़ा खतरा, मधुमेह का अनियंत्रित होना, स्ट्रॉयड की वजह से प्रतिरक्षण क्षमता में कमी है. लंबे समय तक आईसीयू में रहने वाले मरीजों पर यह जल्द प्रभाव छोड़ता है. इस संक्रमण से बचने के लिए कोरोना मरीजों को अस्पतालों से छुट्टी देने के बाद भी ब्लड में ग्लूकोज की निगरानी जरूरी है. एंटीबायोटिक, एंटीफंगल दवा, स्ट्रॉयड और संक्रमणमुक्त पानी का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।