अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस 2022: महिलाओं को समानता का अधिकार तो है परन्तु अनुमति लेने का दबाव महसूस करती है,सशक्त होने की जरूरत – प्रीति दुर्गम

सुकमा एसडीएम प्रीति दुर्गम

महादेवी वर्मा की पंक्तिया आज भी सत्य है ” नारी तेरी यही कहानी आँचल में है दूध और आँखों में है पानी” जिससे हम महिलाओं को स्वतन्त्र करना अत्यंत आवश्यक है

मध्ययुगीन भारत में नारियों की दशा सामाजिक दृष्टि से कमजोर हुई तथा पुरुषो को प्रधानता दी गई। कालान्तर में महिलाये सशक्त हुई है और आज पुरुषों के साथ हर स्तर पर समान रूप से कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। शासन स्तर पर भी नारियों की दशा सुधारने के हर संभव प्रयास हुए है।

अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस पर आज हम एक ऐसी शख्सियत से आपको रूबरू करवाने जा रहें हैं जो छत्तीसगढ़ के अतिसंवेदनशील क्षेत्र कहलाने वाले जिले सुकमा में अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति एवं मेहनत के बल पर राज्य सरकार के महत्वपूर्ण प्रशासनिक पद पर काबिज हैं।

जी हाँ हम बात कर रहे हैं सुकमा जिले की युवा महिला प्रशासनिक अधिकारी सुश्री प्रीति दुर्गम की

सुश्री प्रीति दुर्गम वर्तमान में सुकमा में एसडीएम के पद पर कार्यरत है। किसी भी जिले में जहां सबसे ज्यादा पावरफुल डीएम होता है और उसके पास सारे अधिकार होते हैं, वहीं डिवीजन स्‍तर पर वही अधिकार एसडीएम के पास होते हैं। जिसे उप प्रभागीय न्यायाधीश कहते हैं। एक SDM का पद बहुत जिम्मेदारी भरा होता है।एसडीएम के पद में कोई निश्चित कार्य समय नहीं है, क्योंकि अधिकारी को हर समय ड्यूटी के लिए तैयार रहना पड़ता है। एसडीएम को अपने क्षेत्र में प्रशासन के मामलों की देखभाल करनी पड़ती है।

बारूद के ढेर में बसा कहे जाने वाले बस्तर संभाग के बीजापुर में जन्मी प्रीति दुर्गम अपनी मेहनत और दृढ़ इच्छा शक्ति के बल पर आज इस मुकाम पर पहुंची हैं। स्कूल के दिनों में एक बुद्धिमान छात्रा, जिसने बीजापुर से स्कूली शिक्षा और भिलाई से उच्च शिक्षा प्राप्त की, सुश्री प्रीति दुर्गम ने अपनी सफलता के लिए अपने माता-पिता का आभार व्यक्त किया। प्रीति ने कहा, ‘आज मैं जो कुछ भी हूं अपने माता-पिता की वजह से हूं, जिन्होंने मेरे सपनों को पूरा करने के लिए हर तरह से मेरा साथ दिया।

जीवन में एक दौर ऐसा भी….

News Edition 24 से वार्ता के दौरान उन्होंने बताया कि एक समय उनके जीवन में ऐसा भी आया जब वह दंतेवाड़ा में तहसीलदार के पद पर थी सन् 2020 में जब ग्रामीणों को उनके हित के लिए किए जा रहे कार्यों को लेकर समझाना मुश्किल हो गया। उस वक्त एक डर सा लगा पर वरिष्ठ अधिकारियों के मार्गदर्शन से मैं और मजबूत हो गई।और पूरी निष्ठा भाव से मैं अपने कार्य के प्रति अपना समर्पण कर ग्रामीणों को समझाने में सफल हो गई।

युवा महिला वर्ग के लिए उन्होंने अपने संदेश में कहा कि आज समाज के प्रत्येक क्षेत्रो में महिलाए निरंतर आगे आ रही है परन्तु युवा भारतीय महिलाए आज भी स्वतन्त्र रूप से अपनी इच्छानुसार कार्य नहीं कर पाती है, क्योंकि किसी कार्य जैसे नौकरी करने से लेकर राजनीतिक, सामाजिक, कला, एवं सांस्कृतिक क्षेत्र में ही क्यों न हो लगभग युवा महिलाओं को अपने अभिभावकों या अपने पति से अनुमति लेना पड़ता है जो आवश्यक तो नहीं है, इसे स्वतंत्रा पूर्वक भी किया जा सकता है, परन्तु हमारे भारत में ऐसा नहीं है। महिलाओं को समानता का अधिकार तो है परन्तु अनुमति लेने का दबाव महसूस करती है। इस दबाव से युवा महिलाओं को मुक्त होने की जरूरत है। आज उन्हें अपनी खुद की वैल्यू समझनी होगी। सशक्त होना होगा।

सुश्री प्रीति दुर्गम के यह विचार आने वाली युवा पीढी के लिए एक प्रेरणा स्त्रोत कहा जा सकता है।

✍🏻…एस डी ठाकुर प्रधान संपादक (हिंदी)

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