News Edition 24 Desk: आज 28 जून के दिन ही बीजापुर के सारकेगुड़ा में हुए पुलिस एनकाउंटर के दौरान 17 लोगों की मौत हुई थी। बस्तर के ग्रामीण सुरक्षाबलों पर फर्जी मुठभेड़ का आरोप लगाते हैं। 8 सालों से इस दिन एनकाउंटर में मारे गए ग्रामीणों की याद में बरसी मनाई जाती है।
हर साल इस घटना के विरोध में सारकेगुड़ा निवासी धरना-प्रदर्शन करते हैं। इस साल भी मूलवासी बचाओ मंच के जारी किए गए पोस्टर में 28 जून को सारकेगुड़ा की बरसी पर विशाल जनसभा का एलान किया गया है। बता दे की बरसी के लिए पिछले कुछ हफ्तों से लगातार आसपास के ग्रामीण सिलगेर पहुंच रहे हैं। अब तक लगभग 2 हजार से अधिक ग्रामीण पहुंच चुके हैं। वहीं बस्तर पुलिस भी अपनी तैयारी में जुट गई है। मौके पर बैरिकेडिंग भी की जा रही है।
आंदोलन के लिए दबाव बना रहे नक्सली:
आईजी पी सुंदरराज …
बस्तर आईजी सुंदरराज पी ने कहा कि सिलगेर में बीते 9 जून को आपसी रजामंदी के बाद ग्रामीणों ने आंदोलन को स्थगित कर दिया था, लेकिन उस क्षेत्र के नक्सली ग्रामीणों पर जबरन दबाव बनाकर उन्हें सिलगेर कैंप के विरोध के लिए दोबारा भेज रहे हैं।
इलाके में बड़ी संख्या में सुरक्षाबल तैनात
सिलगेर में 28 जून को बड़े आंदोलन के मद्देनजर बड़ी संख्या में पुलिस बल को तैनात किया गया है। वहीं कोरोना संक्रमण को देखते हुए उसूर ब्लॉक को कंटेनमेंट जोन घोषित किया गया है। इस दौरान किसी भी प्रकार की जुलूस, रैली या जनसभा की अनुमति नहीं है।
क्या है सारकेगुड़ा कांड?
साल 2012 में 28 जून की रात सारकेगुड़ा में सीआरपीएफ और छत्तीसगढ़ पुलिस के संयुक्त एनकाउंटर में 17 लोगों की मौत हुई थी। बता दें इनमें 6 की उम्र 18 साल से भी कम थी। इस कांड के लिए एक सदस्यीय न्यायिक जांच की रिपोर्ट करीब सात साल बाद सामने आई थी। बता दें इलाके के ग्रामीण इसे फर्जी एनकाउंटर बता रहे थे। फिर सामने आई जांच रिपोर्ट ने भी एंकाउंटर पर सवाल उठाए थे।
रिपोर्ट के मुताबिक सुरक्षाबलों की मुठभेड़ में नक्सलियों के शामिल होने के सबूत मिले ही नहीं। रिपोर्ट में मारे गए लोग को ग्रामीण बताया गया था। रिपोर्ट में लिखा था कि एनकाउंटर में जो जवान घायल हुए वो एक-दूसरे की गोलियों से घायल हो गए थे। रिपोर्ट कहती है ग्रामीणों की तरफ से गोली चली ही नहीं थी। गोली चलने के सबूत ही नहीं मिले।
बिंदुओं पर की गई जांच
बता दें कि राज्य सरकार की ओर से 7 बिंदुओं पर जांच के लिए एक सदस्यीय न्यायिक आयोग का गठन किया था, जिसके सभी बिंदुओं पर जांच की गई।
कब-कब क्या हुआ-
28 और 29 जून की रात साल 2012 में सारकेगुडा, कोट्टागुडा और राजपुरा के जंगलों में बैठक कर रहे ग्रामीणों पर सुरक्षाबलों और पुलिसकर्मियों ने फायरिंग की।
फायरिंग में 7 नाबालिग सहित 17 ग्रामीणों की मौत हुई थी। साथ ही 10 ग्रामीण घायल हो गए थे। 6 जवान भी घायल हुए थे।
गांववालों ने सुरक्षाबलों पर एकतरफा फायरिंग का आरोप लगाया था और जांच की मांग की थी।
राज्य सरकार की ओर से 7 बिंदुओं पर जांच के लिए एक सदस्यीय न्यायिक आयोग का गठन किया था।
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति वीके अग्रवाल की अध्यक्षता में आयोग ने इस महीने की शुरुआत में राज्य सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी।
क्या है सिलगेर का मामला?
सुकमा और बीजापुर जिले की सीमा पर स्थित सिलगेर गांव में ग्रामीण सीआरपीएफ कैंप बनाए जाने का विरोध कर रहे थे। इस विरोध प्रदर्शन में सिलगेर गांव के साथ ही आसपास के कई गांव के ग्रामीण जुटे हुए थे। इसी दौरान सुरक्षाबलों की गोलीबारी में 3 लोगों की मौत हुई। आदिवासी ग्रामीण उन्हें समान्य नागरिक और अपना साथी बता रहे थे। वहीं सुरक्षाबल उन्हें नक्सली कह रहे थे। ग्रामीणों का कहना था कि एक गर्भवती महिला की मौत भी भगदड़ मचने से हुई है।