10 लाख का नोट जारी करने वाला पहला देश बना वेनेजुएला, भारत में इसकी कीमत 36 रुपए!

वेनेजुएला के केंद्रीय बैंक ने कहा है कि देश की अर्थव्यवस्था को देखते हुए इतने बड़े करेंसी नोट को जारी करना पड़ा है। अगले हफ्ते में दो लाख बोलिवर और पांच लाख बोलिवर के नोट भी जारी किए जाएंगे। वर्तमान में वेनेजुएला में 10 हजार, 20 हजार और 50 हजार बोलिवर के नोट प्रचलन में हैं। वेनेजुएला में भारत के 1 रुपये की कीमत 25584.66 बोलिवर है।

10 लाख के नोट में आएगा आधा किलो चावल

वेनेजुएला में 10 लाख बोलिवर के नोट अब सबसे बड़े मूल्यवर्ग का नोट बन गए हैं। हालांकि इसकी कीमत तब भी आधा यूएस डॉलर ही है। इतने रुपये में यहां केवल दो किलो आलू या आधा किलो चावल ही खरीद पाएंगे। वहां की सरकार लोगों को सहूलियत देने के लिए बड़े मूल्यवर्ग के नोटों को छापने की योजना बना रही है। जिससे आम लोग बड़ी संख्या में नकदी को लेकर जाने से बचेंगे।

700,000 लोगों के पास खाना खरीदने के लिए पैसे नहीं

एक रिपोर्ट के अनुसार, वेनेजुएला में लगभग 700,000 लोग ऐसे हैं जिनके पास दो वक्त का खाना खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं। यूनाइटेड नेशन फूड प्रोग्राम एजेंसी ने फरवरी में कहा था कि वेनेजुएला के हर तीन में से एक नागरिक के पास खाने के लिए भोजन नहीं है। वर्तमान समय में कोरोना के कारण हालात और ज्यादा खराब हो गए हैं।

पड़ोसी देशों में शरण ले रहे वेनेजुएला के लोग

रिपोर्ट के अनुसार, 2013 के बाद लगभग 30 लाख लोग अपने देश को छोड़कर पड़ोसी देश ब्राजील, कंबोडिया, इक्वाडोर और पेरू में शरण लिए हुए हैं। हालात यहां तक खराब हैं कि इन देशों ने वेनेजुएला की सीमा पर अपनी फौज को तैनात किया हुआ है। वर्तमान समय में यह दुनिया के किसी देश में हुआ सबसे बड़ा विस्थापन है।

जानिए वेनेजुएला की बर्बादी की कहानी

वेनेजुएला एक समय लैटिन अमेरिका का सबसे अमीर देश था। वजह, इसके पास सऊदी अरब से भी ज़्यादा तेल है।

सोने और हीरे की खदानें भी हैं, लेकिन अर्थव्यवस्था पूरी तरह तेल पर टिकी है। सरकार की 95% इनकम तेल से ही होती रही।

बाद में साल 1998 में राष्ट्रपति बने ह्यूगो शावेज ने लंबे समय तक कुर्सी पर बने रहने के लिए देश के सिस्टम में तमाम बदलाव किए। सरकारी और राजनीतिक बदलावों के अलावा शावेज ने उद्योगों का सरकारीकरण किया, प्राइवेट सेक्टर के खिलाफ हल्ला बोल दिया, जहां भी पैसा कम पड़ा तो खूब कर्ज लिया और धीरे-धीरे देश कर्ज में डूबता चला गया। तेल कंपनियों से पैसा लेकर ज़रूरतमंद तबके पर खुलकर खर्च करने से शावेज मसीहा तो बन गए, लेकिन वेनेजुएला की इकॉनमी में दीमक लग गया।

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